चंदा देने वालों के नाम हों सार्वजनिक: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर राजनीतिक दलों को निर्देश दिया है कि चुनाव आयोग को 30 मई तक चंदे की जानकारी दी जाए। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकारी की इलेक्टोरल बॉन्ड की पॉलिसी के खिलाफ ऐसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) द्वारा याचिका दायर की गई थी। एडीआर ने मांग की थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने पर रोक लगाने के साथ ही चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक किए जाएं, ताकि चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी हो।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राजनीतिक दल 15 मई तक मिलने वाली डोनेशन की जानकारी 30 मई तक चुनाव आयोग को एक सीलबंद लिफाफे में सौंप दी जाए। सीजेआइ रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए यह जरूरी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए मिले चंदे का खुलासा किया जाए।

फैसला रखा सुरक्षित

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इसपर फैसला सुरक्षित रख लिया है। शुक्रवार को इस पर फैसला सुनाया जाएगा। वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुनावी बांड के मुद्दे पर कोर्ट आदेश ना दें। उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत चंदा देने वाले शख्स की पहचान इसलिए सार्वजनिक नहीं की जा सकती, क्योंकि दूसरी राजनीतिक पार्टियां जब सत्ता में आएंगी तो वो उस व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।

केंद्र ने भी कोर्ट से अनुरोध करते हुए याचिका दायर कर कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। साथ ही कहा कि चुनावी प्रक्रिया जब पूरी कर ली जाए, तब इस पर फैसला सुनाया जाए। कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस याचिका को खारिज कर दिया। साल 2017-18 के बजट में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चन्दे में पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी।

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