दिल्ली में अधिकांश दलबदलुओं की जगह अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा जताते हुए भाजपा ने उन्हें चुनावी समर में उतारा है। कपिल मिश्रा को टिकट जरूर मिला लेकिन, उन्हें अपनी सीट छोड़कर मॉडल टाउन जाना पड़ा है। गुगन सिंह जैसे पुराने भाजपाई को भी उपचुनाव में पार्टी से बगावत भारी पड़ी है। उन्हें भी टिकट से वंचित कर दिया गया है।
टिकट की उम्मीद में आप व कांग्रेस छोड़कर कई नेता भाजपा में हुए शामिल
आम आदमी पार्टी (आप) से भाजपा में आने वाले अनिल वाजपेयी और कांग्रेसी रहे सुरेंद्र सिंह बिट्टू जरूर भाग्यशाली रहे हैं। इन दोनों को उनके पुराने सीट से मैदान में उतारा गया है। टिकट की उम्मीद में आप व कांग्रेस छोड़कर कई नेता भाजपा में शामिल हुए हैं। इसी तरह से वेद प्रकाश ने वर्ष 2017 में आप छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। उस समय वह बवाना से विधायक थे और उनकी सदस्यता चली गई थी। उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें भाजपा से टिकट दिया लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था।
वहीं, इन्हें टिकट देने से नाराज होकर गुगन सिंह आप का दामन थाम लिए थे। आप टिकट पर वह लोकसभा चुनाव भी लड़े और कुछ दिनों पहले वापस भाजपा में चले आए। यह माना जा रहा था कि इस बार बवाना से पार्टी उन्हें चुनाव मैदान में उतारेगी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। वेद प्रकाश को भी इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया है।
लोकसभा चुनाव के समय बिजवासन के विधायक कर्नल देवेंद्र सहरावत और अनिल वाजपेयी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इस वजह से दोनों की विधानसभा सदस्यता भी चली गई थी। दोनों इस बार फिर से दावेदारी जता रहे थे। पार्टी ने वाजपेयी को गांधीनगर से उम्मीदवार बना दिया, लेकिन बिजवासन सीट पर सहरावत की जगह अपने कद्दावर नेता सतप्रकाश राणा पर फिर से विश्वास जताया है।
लोकसभा चुनाव के समय ही पूर्व मंत्री व कांग्रेस नेता राजकुमार चैहान ने भी भाजपा का दामन था। वह भी मंगोलपुरी से टिकट की दौड़ में थे। अचानक प्रत्याशियों की घोषणा से पहले वह वापस कांग्रेस में चले गए। चर्चा है कि टिकट कटने की आशंका से वह वापस कांग्रेस में चले गए। कई वर्ष पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले पूर्व विधायक अंबरीश गौतम और प्रत्युष कंठ भी टिकट से वंचित रह गए हैं। हालांकि, कांग्रेस से आए पूर्व सुरेंद्र सिंह बिट्टू तीमारपुर से टिकट हासिल करने में सफल रहे हैं।