मुंहबाए खड़ी हैं नए मुखिया के सम्मुख पहाड़ सरीखी चुनौतियां: मदन कौशिक

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प्रदेश सरकार के साथ ही भाजपा संगठन में हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद पूर्व मंत्री मदन कौशिक ने नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया है, मगर उनके सामने भी पहाड़ सरीखी चुनौतियां मुंहबाए खड़ी हैं। राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में तो उनकी अग्निपरीक्षा होगी ही, नेतृत्व परिवर्तन से नाराज विधायकों को साधने की चुनौती सामने होगी। उन्हें बतौर प्रदेश अध्यक्ष खुद को साबित करना होगा तो महज 10 माह के भीतर चुनाव से पहले प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का भ्रमण और वहां के कार्यकत्र्ताओं के मन की थाह लेने की चुनौती भी है। चुनाव में यदि पार्टी की सीटें कम होती हैं तो इसका ठीकरा प्रदेश अध्यक्ष के सिर भी फूटना तय है।

त्रिवेंद्र सरकार में शहरी विकास मंत्री और शासकीय प्रवक्ता रहे कौशिक पूर्व में पार्टी संगठन में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। कौशिक के पास सरकार और संगठन, दोनों का अनुभव है, लेकिन जिन परिस्थितियों में उन्हें प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई है, वह खासी चुनौतीपूर्ण है। अगले साल ही भाजपा को विधानसभा चुनाव में जनता के दरबार में जाना है और चुनाव लड़ाने का जिम्मा कौशिक के कंधों पर रहेगा।

हालांकि, चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तो रहेगी ही, मगर राज्य में सरकार के चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पार्टी संगठन के चेहरे के तौर पर कौशिक ही सामने होंगे। जाहिर है कि इसके लिए कौशिक को नए सिरे से रणनीति तय करनी होगी, ताकि चुनाव में पार्टी फिर से वर्ष 2017 जैसा प्रदर्शन दोहरा सके। यही नहीं, सरकार में नेतृत्व परिवर्तन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री के करीबी रहे विधायकों में नाराजगी का भाव स्वाभाविक है। ऐसे में उन्हें साधना भी कौशिक के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।

सरकार और संगठन के बीच सशक्त सेतु के तौर पर करना होगा कार्य

साथ ही सरकार और संगठन के बीच सशक्त सेतु के तौर पर कार्य करना होगा, तो सभी विधायकों, कार्यकत्र्ताओं को साथ लेकर चलने की चुनौती होगी। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर जिलों में किसान आंदोलन की हल्की-फुल्की आंच को देखते हुए इससे पार पाना होगा, तो पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में बेहतर सामंजस्य पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। यह ठीक है कि विषम भूगोल वाले इस राज्य में भाजपा का बूथ स्तर तक सांगठनिक ढांचा है, लेकिन उसे सक्रिय करने की दिशा में उन्हें आगे बढना है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों का भ्रमण चुनौतीपूर्ण होगा। साथ ही जमीनी कार्यकत्र्ताओं तक पहुंच के लिए नए अध्यक्ष को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। ऐसी एक नहीं अनेक चुनौतियां सामने हैं। सूरतेहाल, अब सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि कौशिक किस प्रकार इनसे पार पाते हैं।

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