देश में इस साल गर्मी पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ रही है। वहीं गर्मी के साथ ही बढ़ती हीव वेव ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हीट वेव साइलेंट किलर के तौर पर काम कर रही है। पिछले कुछ सालों में भारत के शहरों में प्राकृतिक आपदा की तुलना में हीट वेव से ज्यादा मौतें हुई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2006 के बाद से हीट वेव की संख्या बढ़ी है। वर्ष 2015 में भारत में हीट वेव के चलते दो हजार से ज्यादा लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी।
पर्यावरण और डेवलपमेंट के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था इंटीग्रेटेड रिसर्च एंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट ने कनाडा की संस्था इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर के साथ हीट वेव पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इस रिपोर्ट में बढ़ती हीट वेव को काफी चिंताजनक बताते हुए इसे साइलेंट किलर बताया है। भारत में 2014 से 2017 के बीच हीट वेव से लगभग 4500 लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी है। भारत में 2000 के दशक की शुरुआत में जलवायु परिवर्तन से बढ़ी गर्मी के चलते आधारभूत मृत्यु दर प्रति एक लाख लोगों पर लगभग 550 थी।
भारत में जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब, 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक) के कारण मृत्यु दर में 10ः की वृद्धि होने का अनुमान है। रिकॉर्ड बताते हैं कि हीट वेव्स से प्रभावित राज्यों की संख्या 2015 से 2019 के बीच लगातार बढ़ी है। 2015 में पूरे साल में औसतन 7 दिन हीट वेव दर्ज की गई जो 2019 में बढ़ कर पूरे साल में 32 दिन हो गयी। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेस्क 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक क्लाइमेट चेंज के चलते दक्षिण एशिया के देशों में गर्मी और हीट वेव और बढ़ेगी। रिपोर्ट के मुताबिक हीट वेव के चलते एक तरफ जहां लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर सीधा असर पड़ रहा है वहीं उनकी प्रोडक्टिविटी भी घट रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) ने भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों का सीएसई ने विश्लेषण किया है। इन आंकड़ों के अनुसार, 2022 की शुरुआती हीट वेव 11 मार्च को शुरू हुई थी, जिसने 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (24 अप्रैल तक) को प्रभावित किया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इस अवधि के दौरान, इन राज्यों में हीट वेव के 25 दिन (भीषण गर्मी की लहर ध् लू) सबसे बुरे रहे।
ऐसे होता है हीट वेव का ऐलान
मौसम विभाग के मुताबिक हीट वेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी खास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीट वेव की घोषणा करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे ‘गंभीर’ हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो ‘गंभीर’ हीट वेव की घोषणा की जाती है।
पहाड़ों में भी बढ़ी गर्मी
आश्चर्यजनक रूप से, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बाद, हिमाचल प्रदेश जैसा पर्वतीय राज्य इस वर्ष हीट वेव से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। यहां हीट वेव और गंभीर हीट वेव के 21 दिन दर्ज किए गए। आईएमडी के आंकड़ों में एक विवादित बिंदु भी है। मौसम एजेंसी ने आधिकारिक तौर पर ओडिशा के लिए केवल एक हीट वेव दिवस घोषित किया है, जबकि डाउन टू अर्थ ने हाल ही में 24 अप्रैल को राज्य भर में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान दर्ज किए जाने और अप्रैल की शुरुआत से ही लगातार बढ़ते तापमान की सूचना दी है। कोट्टायम स्थित इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के डी शिवानंद पाई का कहना है कि मार्च में राजस्थान के पश्चिमी हिस्सों में एंटी-साइक्लोन और बारिश वाले पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति शुरुआती हीट वेव के कारण रहे। वायुमंडल में उच्च दबाव प्रणाली के आसपास तापमान बढाने वाली हवाओं के होने से, एंटी-साइक्लोन गर्म और शुष्क मौसम का कारण बनते हैं।
ला-नीना सीमा से अधिक समय तक रहा
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के एक क्लाइमेट साइंटिस्ट रघु मुर्तुगुड्डे बताते हैं कि पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में ला नीना से जुड़ा एक नार्थ-साउथ प्रेशर पैटर्न, जो भारत में सर्दियों के दौरान होता है, उम्मीद से अधिक समय तक बना रहा। इसने तेजी से गर्म हो रहे आर्कटिक क्षेत्र से आने वाली गर्म लहरों के साथ मिल कर हीट वेव का निर्माण किया। पूर्वी और मध्य प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान ला नीना के दौरान औसत से अधिक ठंडा हो जाता है। यह हवा के दबाव में परिवर्तन के माध्यम से समुद्र की सतह पर बहने वाली व्यापारिक हवाओं को प्रभावित करता है। ये व्यापारिक हवाएं इस मौसम की गड़बड़ी को अपने साथ ढो कर ले जाती है और दुनिया के बड़े हिस्से को प्रभावित करती हैं। भारत में, यह घटना ज्यादातर नम सर्दियों से जुड़ी है। इसलिए, भारत में वसंत और गर्मी के दौरान ला नीना का वर्तमान प्रभाव पूरी तरह से अप्रत्याशित है। मुर्तुगुड्डे कहते हैं कि हीट वेव जून में मानसून के शुरू होने तक जारी रह सकती हैं।
आईपीसीसी ने कहा इस वजह से बढ़ी गर्मी
छठी मूल्यांकन रिपोर्ट की पहली किस्त में, आईपीसीसी ने जोर देकर कहा कि मानव इतिहास में, मानवीय गतिविधियों ने ग्रह को उस तेजी से गर्म किया है, जिसे अब से पहले कभी नहीं देखा गया है। 1850-1900 के पूर्व-औद्योगिक अवधि की तुलना में, पृथ्वी की वैश्विक सतह का तापमान 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है। मानव हस्तक्षेप इस स्थिति का मुख्य कारण है (जो 1950 के दशक से लगातार तेज हुआ है)। जलवायु मॉडल और विश्लेषण में सुधार ने वैज्ञानिकों को वर्षा, तापमान और अन्य कारकों के रिकॉर्ड देखकर जलवायु परिवर्तन पर मानव प्रभाव की पहचान करने में सक्षम बनाया है। पिछले दो दशकों में, वैज्ञानिकों ने ऐसी स्थिति के लिए जिम्मेवार मानवजनित जीएचजी उत्सर्जन की भूमिका का विश्लेषण करते हुए 350 से अधिक साइंटिफिक पेपर और असेसमेंट प्रकाशित किए हैं। आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर अतिरिक्त 0.5 डिग्री सेल्सियस अत्यधिक वर्षा और सूखे के साथ-साथ गर्म मौसम को बढ़ाएगी। यदि कार्बन उत्सर्जन अधिक रहता है तो भारत में हीट वेव्स के “2036-2065 तक 25 गुना अधिक समय तक” रहने की संभावना है। यह सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगा, जैसा कि 28 अक्टूबर, 2021 को प्रकाशित एक इंटरनेशनल क्लाइमेट रिपोर्ट (जी-20 देशों को कवर करते हुए) में कहा गया है।