देहरादून,21 अप्रैल 2025 ( रजनीश प्रताप सिंह तेज ) : देवभूमि उत्तराखंड की गोद में बसा (थानों) Lekhak Gaon,Thano अब भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनने की ओर अग्रसर है.
गुजरात साहित्यिक अकादमी Gujarat sahitya academy के अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. भाग्येश झा के दो दिवसीय उत्तराखंड प्रवास के दौरान,
उन्होंने “भारतीय भाषाओं की स्मृति और समृद्धि” विषयक एक महत्वपूर्ण संगोष्ठी में भाग लेने के लिए लेखक गांव का दौरा किया.
इस अवसर पर डॉ. झा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए प्रतिष्ठित “लेखक गांव सृजन सम्मान” से नवाजा गया.
डॉ. भाग्येश झा: लेखक गांव एक विलक्षण कल्पना
डॉ. भाग्येश झा ने अपने संबोधन में ‘लेखक गांव’ की स्थापना को एक असाधारण और दूरदर्शी पहल बताया.
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि निकट भविष्य में गुजरात साहित्य अकादमी और लेखक गांव मिलकर भारतीय भाषाओं की गौरवशाली विरासत को सहेजने, उनका व्यापक प्रचार-प्रसार करने और उन्हें नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेंगे.
डॉ. झा ने वर्तमान परिदृश्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज हम इंटरनेट आधारित ज्ञान को ही अध्ययन का मुख्य स्रोत मान रहे हैं,
जबकि भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान, जैसे वेद, पुराण और शास्त्र, संपूर्ण और प्रामाणिक ज्ञान के अथाह भंडार हैं
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है
जब इस पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक नवाचारों के साथ जोड़कर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया जाए.
और इसे वैश्विक मंच पर उसकी rightful जगह दिलाई जाए.
‘लेखक गांव’ की परिकल्पना: डॉ. निशंक का दूरदर्शी दृष्टिकोण
यह उल्लेखनीय है कि हाल ही में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अपने गुजरात दौरे के दौरान गुजरात साहित्य अकादमी के एक कार्यक्रम में ‘लेखक गांव’ की अनूठी परिकल्पना का उल्लेख किया था.
इसी कार्यक्रम में गुजरात के मुख्यमंत्री ने भी लेखक गांव आने की प्रबल इच्छा व्यक्त की थी.
इसी सिलसिले में गुजरात साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. भाग्येश झा और महासचिव डॉ. जयेंद्र यादव विशेष रूप से लेखक गांव के भ्रमण पर आए.
डॉ. निशंक ने इस अवसर पर कहा कि उत्तराखंड आदिकाल से ही वेद, पुराण और उपनिषदों की जन्मभूमि रहा है
यह आयुर्वेद की पवित्र धरती है
और न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए प्राणवायु का स्रोत है.
यह विश्व की अमूल्य आध्यात्मिक धरोहर है.
हिमालय की शांत गोद में स्थापित ‘लेखक गांव’ न केवल साहित्य सृजन का एक पवित्र स्थल बनेगा,
बल्कि यह भावी पीढ़ी के प्रतिभाशाली रचनाकारों के निर्माण का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र साबित होगा.
नालंदा पुस्तकालय: ज्ञान का अद्भुत संगम
डॉ. निशंक ने ‘लेखक गांव’ में स्थापित हो रहे ‘नालंदा पुस्तकालय एवं शोध केंद्र’ की प्रगति के बारे में भी जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना के प्रथम चरण में 10 लाख पुस्तकों के विशाल संग्रह का लक्ष्य निर्धारित किया गया है,
जिसमें अब तक 60,000 से अधिक पुस्तकें संकलित की जा चुकी हैं.
यह पुस्तकालय निश्चित रूप से शोधकर्ताओं और छात्र-छात्राओं के लिए ज्ञान का एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण केंद्र सिद्ध होगा.
सांस्कृतिक धरोहर का अनुपम खजाना
पद्मश्री प्रीतम भारतवान ने ‘लेखक गांव’ को उत्तराखंड की एक अमूल्य सांस्कृतिक पूंजी बताते हुए इसकी महत्ता को रेखांकित किया.
इस महत्वपूर्ण अवसर पर पद्मश्री डॉ. बी.के. संजय, पद्मश्री डॉ. योगी एरोन, पद्मश्री श्रीमती माधुरी बर्थवाल, स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. काशीनाथ जेना, पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक प्रो. सविता मोहन, पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ‘मैती’ और लेखक गांव के मुख्य कार्याधिकारी ओ. पी. बडोनी के साथ-साथ देश भर के कई प्रतिष्ठित साहित्यकार और लेखक उपस्थित थे, जिन्होंने इस पहल की सराहना की.
कार्यक्रम की शुरुआत से पहले, उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों ने भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.
और परिसर में वृक्षारोपण भी किया,
जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति ‘लेखक गांव’ की प्रतिबद्धता को दर्शाता है
‘लेखक गांव’ निश्चित रूप से भारतीय भाषाओं और साहित्य के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद और प्रेरणा का स्रोत बनने जा रहा है.