नयी दिल्ली ,29 अप्रैल 2025 ( रजनीश प्रताप सिंह तेज ) : अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति और वैश्विक हिन्दीशाला संस्थान (वीएचएसएस जर्मनी) ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए “द लिटरेचर लॉरेट” अवार्ड से सम्मानित किया।
यह सम्मान डॉ. निशंक को उनकी रचनाधर्मिता, हिंदी और संस्कृत भाषा के संवर्धन और प्रचार-प्रसार के साथ ही “लेखक गांव” की संकल्पना को साकार करने के लिए प्रदान किया गया है।
सम्मान समारोह:
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, नई दिल्ली में एक भव्य कार्यक्रम में संस्था के अध्यक्ष पंडित सुरेश नीरव और सचिव क्रिस्टीन म्यूलर ने डॉ. निशंक को यह सम्मान प्रदान किया।
पंडित नीरव ने डॉ. निशंक को एकमात्र ऐसे राजनेता के रूप में सराहा जिन्होंने हिंदी और संस्कृत भाषा और संस्कृति के उत्थान के लिए निरंतर कार्य किया है।
उन्होंने डॉ. निशंक के साहित्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनकी रचनाएं भारत ही नहीं,
बल्कि विश्व के अनेक देशों में भी विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हुई हैं।
वैश्विक हिन्दीशाला संस्थान के सचिव क्रिस्टीन म्यूलर ने कहा की डॉ. निशंक के साहित्य पर लगभग 25 शोध हो चुके है
और भारत सहित विश्व के अनेक देशों में उनकी पुस्तकें पढ़ाई जा रही है।
संस्था ने डॉ. निशंक को यह सम्मान देने पर गर्व व्यक्त किया।
“लेखक गांव” की स्थापना:
डॉ. निशंक की प्रेरणा से देहरादून में शिवालिक पहाड़ियों के आँचल में “लेखक गांव” की स्थापना की गई है।
इस गांव का उद्घाटन 25 अक्टूबर 2024 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद, उत्तराखंड के राज्यपाल ले.ज. गुरुमीत सिंह (से.नि.), उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रसिद्ध गीतकार प्रसून जोशी ने किया था।
डॉ. निशंक ने “लेखक गांव” को रचनाधर्मिता का एक वैश्विक केंद्र बनाने की कल्पना व्यक्त की है।
उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में “लेखक गांव” अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लेखकों, नवोदित साहित्यकारों, कवियों, शोधार्थियों और पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का अध्ययन केंद्र बनेगा।
“लेखक गांव” में स्थापित “नालंदा पुस्तकालय” में 10 लाख पुस्तकों का संग्रह करने का लक्ष्य है।
डॉ. निशंक का आभार और विचार:
सम्मान मिलने पर डॉ. निशंक ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य सृजन समाज के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उन्होंने भाषा-संस्कृति, आध्यात्म और आस्था को मानव विकास के लिए आवश्यक बताया और पुस्तकों को इसका सरल माध्यम कहा।
उन्होंने कहा की उनकी 110 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन एक बड़ी उपलब्धि है और उनकी पुस्तकों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में हुआ है।
उपस्थित गणमान्य व्यक्ति:
इस अवसर पर डॉ. शिप्रा शिल्पी, अनिल जोशी, कपिल त्रिपाठी, मधु मिश्रा, डॉ. वेदप्रकाश, डॉ. कविता सिंह प्रभा और ऋषि सक्सेना सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।