मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से मंगलवार को राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के प्रतिनिधिमण्डल ने मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने कहा कि आपदा के मौजूदा मानकों से पहाड़ के लोगों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। मुख्यमंत्री ने पर्वतीय क्षेत्रों के लिए आपदा के मानक बदलने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि मौजूदा मानक मैदान की जरूरतों के अनुसार बनाए गए हैं। जिससे पहाड़ के आपदा प्रभावितों को कम आर्थिक मदद मिल पा रही है।
पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतर मकान मिट्टी के होते हैं और उनकी छत पटालों से बनायी जाती हैं। आपदा की गाईडलाईन के अनुसार ऐसे मकानों को कच्चा मकान कहा जाता है और इनके टूटने पर लोगों को कम आर्थिक मदद मिल पा रही है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के मकानों को पक्के मकानों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय टीम से कहा कि पहाड़ में आपदा का स्वरूप अलग होता है।
ऐसे में आपदा प्रबंधन की योजनाएं भी उसी के अनुरूप बनाई जाए। उन्होंने पहाड़ के लिए योजनाओं और दिशा निर्देशों में बदलाव की जरूरत बताई। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में फॉरेस्ट फायर और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से अधिक नुकसान होता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन के तहत बनायी जाने वाली योजनाओं में वनाग्नि को भी शामिल किया जाए। मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वालों में एनडीएमए सदस्य राजेन्द्र सिंह, संयुक्त सचिव एनडीएमए रमेश कुमार, संयुक्त सलाहकार नवल प्रकाश शामिल थे।
दूरस्थ क्षेत्रों में राहत कार्य पहुंचाना एक चुनौती
मुख्यमंत्री ने कहा कि दूरस्थ क्षेत्रों में राहत कार्य पहुंचाना एक चुनौती है। इसके लिए सरकार युवा मंगल दलों, महिला मंगल दलों को राहत एवं बचाव का प्रशिक्षण दे रही है। इसमें घायलों को फस्ट एड देने जैसे प्रशिक्षण भी शामिल हैं। उन्होंने एनडीएमए द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम आपदा मित्र के प्रशिक्षण में ट्रामा ट्रेनिंग को भी शामिल करने का अनुरोध किया।
एनडीएमए सदस्य राजेन्द्र सिंह ने बताया देशभर में आपदा मित्र योजना शुरू की गई है। योजना के तहत आपदा मित्रों को 12 से 15 दिन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। योजना में देश के 350 जिलों में एक लाख आपदा मित्र तैयार किए जा रहे हैं। राज्य में भी यूएस नगर और हरिद्वार को चुना गया है।