उत्तराखंड विधानसभा में ध्वनिमत से पारित हुआ ऐतिहासिक भू-कानून संशोधन विधेयक

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देहरादून ,21 फरवरी 2025 ( रजनीश प्रताप सिंह तेज ) : उत्तराखंड विधानसभा ने आज एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए ध्वनिमत से ‘उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025’ पारित कर दिया।

इस विधेयक के पारित होने से राज्य में भूमि प्रबंधन और भू सुधार के क्षेत्र में एक नई दिशा मिलेगी।

  • ऐतिहासिक भू-कानून संशोधन: उत्तराखंड विधानसभा ने ध्वनिमत से ‘उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025’ पारित किया, जो भूमि प्रबंधन और सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • भू-माफियाओं पर लगाम: मुख्यमंत्री ने कहा कि यह संशोधन भू-माफियाओं से राज्य के संसाधनों और जमीनों को बचाने का संकल्प है, और असली निवेशकों को प्रोत्साहित करेगा।
  • जनभावनाओं के अनुरूप निर्णय: सरकार ने जनता की भावनाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप निर्णय लिया है, और इस कानून में सभी हितधारकों के सुझावों को शामिल किया गया है।
  • अवैध अतिक्रमण हटाया गया: राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाया है, जिससे वन भूमि और सरकारी भूमियों को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया है।
  • प्रक्रिया में बदलाव: कृषि, औद्योगिक और आवासीय परियोजनाओं के लिए भूमि खरीद की अनुमति की प्रक्रिया में बदलाव किया गया है, जिससे पारदर्शिता और नियंत्रण बढ़ेगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि यह संशोधन भू सुधारों में अंत नहीं, बल्कि एक शुरुआत है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने जन भावनाओं के अनुरूप भू सुधारों की नींव रखी है

और भविष्य में भी इस पर निरंतर कार्य किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने राज्य की जनता की जनभावनाओं एवं अपेक्षाओं के अनुरूप निर्णय लिया है।

उन्होंने कहा कि सरकार कई नए महत्वपूर्ण मामलों पर ऐतिहासिक निर्णय ले रही है

और उत्तराखंड के संसाधनों, जमीनों को भूमाफियाओं से बचाने का संकल्प लिया है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पर्वतीय इलाकों के साथ मैदानी इलाके भी हैं,

जिनकी भौगोलिक परिस्थिति एवं चुनौतियां अलग-अलग हैं।

उन्होंने कहा कि जब से स्व. अटल जी ने उत्तराखंड राज्य के लिए औद्योगिक पैकेज दिया है,

तब से राज्य सरकार बड़ी संख्या में औद्योगीकरण की ओर जा रही है।

ऐसे में राज्य में आने वाले असल निवेशकों को कोई दिक्कत न हो,

निवेश भी न रुके, इसके लिए इस नए संशोधन/कानून में सभी को समाहित किया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार सबकी जन भावनाओं के अनुरूप कार्य कर रही है।

उन्होंने कहा कि बीते कुछ वर्षों में देखा जा रहा था कि प्रदेश में लोगों द्वारा विभिन्न उपक्रम के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीनें खरीदी जा रही थी।

उन्होंने कहा कि भू प्रबंधन एवं भू सुधार कानून बनने के पश्चात इस पर पूर्ण रूप से लगाम लगेगी।

इससे असली निवेशकों और भू माफियाओं के बीच का अंतर भी साफ होगा।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने बीते वर्षों में बड़े पैमाने पर राज्य से अतिक्रमण हटाया है।

वन भूमि और सरकारी भूमियों से अवैध अतिक्रमण हटाया गया है।

3461.74 एकड़ वन भूमि से कब्जा हटाया गया है।

यह कार्य इतिहास में पहली बार हमारी सरकार ने किया।

इससे इकोलॉजी और इकॉनमी दोनों का संरक्षण मिला है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में कृषि एवं औद्योगिक प्रयोजन हेतु खरीद की अनुमति जो कलेक्टर स्तर पर दी जाती थी,

उसे अब 11 जनपदों में समाप्त कर केवल हरिद्वार और उधम सिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर से निर्णय लिए जाने का प्रावधान किया गया है।

उन्होंने कहा कि आवासीय परियोजना हेतु 250 वर्ग मीटर भूमि क्रय हेतु शपथ पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।

शपथ पत्र गलत पाए जाने पर भूमि राज्य सरकार में निहित की जाएगी

सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों के अंतर्गत थ्रस्ट सेक्टर एवं अधिसूचित खसरा नंबर भूमि क्रय की अनुमति जो कलेक्टर स्तर से दी जाती थी,

उसे समाप्त कर, अब राज्य सरकार के स्तर से दी जाएगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके साथ ही नए कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार ने गैरसैंण में भी हितधारकों, स्टेकहोल्डर से विचार लिए थे।

इस नए प्रावधानों में राज्यवासियों के विचार लिए गए हैं, सभी के सुझाव भी लिए गए हैं।

सभी जिलों के जिलाधिकारियों एवं तहसील स्तर पर भी अपने जिलों में लोगों से सुझाव लिए गए।

सभी के सुझाव के अनुरोध ये कानून बनाया गया है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य मूल स्वरूप बना रहे, यहां का मूल अस्तित्व बचा रहे।

इसके लिए इस भू सुधार किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि राज्य की डेमोग्राफी बची रहे, इसका विशेष ध्यान रखा गया है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में औद्योगिक, पर्यटन, शैक्षणिक, स्वास्थ्य तथा कृषि एवं औद्यानिक प्रयोजन आदि हेतु आज तिथि तक राज्य सरकार एवं कलेक्टर के स्तर से कुल 1883 भूमि क्रय की अनुमति प्रदान की गयी।

उक्त प्रयोजनों/आवासीय प्रयोजनों हेतु क्रय की गयी भूमि के सापेक्ष कुल 599 भू-उपयोग उल्लंघन के प्रकरण प्रकाश में आये हैं,

जिनमें से 572 प्रकरणों में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश-2001) की धारा 166/167 के अन्तर्गत वाद योजित किये गये हैं

तथा 16 प्रकरणों में वाद का निस्तारण करते हुए 9.4760 हे० भूमि राज्य सरकार में निहित की गयी है।

अवशेष प्रकरणों में कार्यवाही की जा रही है।

यह नया कानून उत्तराखंड के विकास और समृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

इससे राज्य में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और भू माफियाओं पर लगाम लगेगी।