रविवार को चंडीघाट स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन की ओर से आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम का समापन हो गया। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक आशीष गौतम ने समापन सत्र में आये हुए अतिथियों और शिविर सहयात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन निरन्तर पीड़ित मानवता की सेवा करते हुए अध्यात्म सेवा के मार्ग का अनुगामी बना हुआ है।
आत्म स्वरूप में लौटना ही अध्यात्म है
आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी ने कहा कि आत्म स्वरूप में लौटना ही अध्यात्म है। सेवा के मूल में त्याग, समर्पण, प्रेम, करुणा का तत्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भागवत में भगवान श्रीकृष्ण को अध्यात्म दीप कहा गया है। स्वयं में परिवर्तन करने का प्रयास ही आत्म स्वरूप को पान है। ईश्वर सर्व व्यापक है जिसका दर्शन प्राणी मात्र में किया जा सकता है।
विधानसभा अध्यक्ष ने दिव्य प्रेम सेवा मिशन को अध्यात्म, सेवा और परमार्थ की त्रिवेणी बताते हुए कहा कि वर्ष 1997 में स्थापित दिव्य प्रेम सेवा मिशन एक पौधे से विशाल वट वृक्ष बन चुका है, जिसकी छाया में कुष्ट रोगियों और उनके परिवारों को आश्रय और सेवा दोनों मिल रही हैं।