निकायों का कामकाज निर्वाचित प्रतिनिधि ही देखेंगेः हाई कोर्ट

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निकाय चुनावों को लेकर असमंजस से घिरी सरकार के समक्ष एक और चुनौती खड़ी हो गई है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले के आधार पर अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार की दो मई की अधिसूचना को स्थगित कर दिया है। कोर्ट ने आदेश में कहा कि राज्य में अधिशासी अधिकारी निकायों के प्रशासक होंगे और निर्वाचित प्रतिनिधियों की देखरेख में काम करेंगे।

दो मई को राज्य सरकार ने निकायों के निर्वाचित बोर्ड को भंग कर डीएम को प्रशासक नियुक्त कर दिया था। जसपुर के चेयरमैन मोहम्मद उमर ने याचिका दायर कर सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी। याचिका में समय पर निकाय चुनाव कराने तथा तब तक निर्वाचित बोर्ड को कामकाज करते रहने देने का आग्रह किया। याचिका में उत्तर प्रदेश में 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के ऐसे ही फैसले का जिक्र किया गया है। संवैधानिक स्थिति भी यही है कि निकायों में डीएम के स्थान पर अधिशासी अधिकारी ही प्रशासक होंगे और चुनाव होने तक निर्वाचित प्रतिनिधियों की देखरेख में काम करेंगे।

न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार की दो मई की अधिसूचना को स्थगित कर दिया और अंतरिम आदेश पारित करते हुए अधिशासी अधिकारी को प्रशासक बनाने व निर्वाचित प्रतिनिधियों की देखरेख में उन्हें काम करने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट ने सरकार से इस मामले में तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अधिवक्ता संजय भट्ट ने बताया कि कोर्ट ने निर्वाचित प्रतिनिधियों को पूर्ण अधिकार तो नहीं दिया है, अलबत्ता प्रशासक बनाए गए अधिशासी अधिकारी उनकी देखरेख में काम करेंगे।

इलाहाबाद कोर्ट का था फैसला

2015 में उत्तर प्रदेश में भी उत्तराखंड के निकाय चुनावों जैसी ही स्थिति बनी थी। मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जिलाधिकारी के बजाय निकायों के ईओ को प्रशासक नियुक्त कर दिया था। साथ ही प्रशासकों को निर्वाचित प्रतिनिधियों की देखरेख में ही काम करने का आदेश पारित किया था। नैनीताल हाई कोर्ट ने इसी आदेश को अंतरिम आदेश में आधार बनाया है।

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